मन में कहीं गहरे
मैं ने चाहा है एक
आत्मिक सम्बंध
एक शब्द हीन‚
अभिव्यक्तिहीन लगाव
वह चाहे कुछ भी हो‚
समुद्र न हो कि अल्हड़ नदी सी दौड़ पड़ूं
आकाश न हो कि उसकी आकांक्षा में आंखें पत्थर कर लूँ
वृक्ष न हो कि लता बन उस पर निर्भर करुं
हो बस
इस जीवन प्रवाह का समानान्तर किनारा
या हम हों
दो विपरीत दिशा की हवाओं के झोंके
जो एक दूसरे को छुए बिना
एक दूसरे के आर–पार गुज़र जाएं
हो दर्पण में अपने ही प्रतिबिम्ब सा
या इस ब्रह्माण्ड से बिछड़े
दो अग्नि स्फुलिंग जो छिटक कर अलग हों
फिर इसी में गिर एक हो जाएं
क्या कहीं होगा
कोई ऐसा अदेही सम्बंध?

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आज का विचार

एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।

आज का शब्द

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।