घनेरी रात की नदी की
स्याह उमड़ती घुमड़ती अंधियारी लहरों
के वेग से
किनारे बैठी मैं विकल हो
विवस्त्र हो जाती हूं और
कूद पड़ती हूं
हहराती स्याह लहरों में
हाथ को हाथ नहीं सूझता
क्लान्त हो मैं डूबने लगती हूं
कि अर्धचेतनता में ही
महसूस होती हैं दो सशक्त भुजाएं
मुझे कस कर पार करती हैं
अंधेरे की नदी
अर्धचेतनता में
मैं उस चेहरे को अकसर देख कर
भी भूल सा जाती हूं
वह मेरे होंठों में अपने होंठों
से प्राण फूंकता है।
मेरे वक्षों में स्पन्दन भर
डूबते हृदय को
जगाता है
ठण्डी देह को अपनी देह से लिपटा
अपनी उष्णता मुझसे बांट लेता है
मैं अर्धचेतनता में
नेत्र खोलती हूं
और अंधेरे में उजाले की किरण
सी मुस्कान उसके चेहरे पर पाती हूं
बस वहीं उलझ कर
बाकि का चेहरा देखने से चूक जाती हूं।
कविताएँ
अंधेरे में उजाले की किरण
आज का विचार
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
आज का शब्द
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।