सम्वेदनशीलता की हमारी सोच
बहुत बेमानी होती
अगर हम
रोज़ कमा कर
रोज़ खाने वाली
ज़िन्दगी का जीवट टुकड़ा होते

कविताओं से निकल कर
ज़िन्दगी के हाशिये पर पड़ा
घायल‚ छटपटाता
आदमियत का सच्चा किस्सा
अगर कभी देखा होता
तब कहां होता वक्त
अखबार की खबरों पर
चिन्तित होने का
या खुश होने का
जब ज़िन्दा रहने का फटेहाल सवाल
हर सुबह सूरज के साथ लटका होता

कचरे से पॉलीथीन बीनते – बीनते
छिन गई होती मासूमियत तब
एक रोटी के बदले
सौंदर्यबोध तब कहां होता
कहीं बचपन ही में खो गया होता

बौद्धिकता का तकाज़ा
कहीं फाके कर रहा होता
दिन भर की मजूरी के बदले
कटी – छिली उंगलियों की पोरों पर
अस्तित्वबोध हिसाब लगा रहा होता
रूमानियत तब कर रही होती
सौदा अपने जवान सपनों का
हर हंसी‚ जिस्म की हर एक लहर को
जु.ल्फों के पेचो – ख़म को
प्रेम बाज़ारवाद के तराज़ू पर
तौल रहा होता !!

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आज का विचार

किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

आज का शब्द

समानता Women’s Day advocates gender parity. महिला दिवस लैंगिक समानता की वकालत करता है।