सनसनाता
एक बर्फीला चुप
रगों को जमा रहा है
उदासी की रूमानियत
वाष्पित हो रही है
विद्रोह वहशियत में बदल जाए
उससे बहुत पहले
नींद की ठण्डी जमी झील में उतर गई हूँ
इतने भीषण शिशिर के बाद
फूलों का मौसम अब नहीं लौटेगा
बर्फ से जले इस अरण्य में
धूप का कोई उष्ण टुकड़ा नहीं उतरेगा
अंतिम सेतु टूट रहे हैं
मैं बहुत ठण्डे शून्य में गहरे उतर आई हूँ
आत्मीय जनों के स्वर
जंगल के उस पार से आते सुनाई देते हैं
माँ का रूदन
पिता के चिंतित स्वर
एक उखड़ा सा स्वर तुम्हारा भी
कोई विवाद है?
किस पर थोपी जा रही है
इस ‘आत्मघात’ की ज़िम्मेदारी?
‘चले जाओ तुम’
मैं बहुत नीचे किसी गहरे कुंए से
चीख कर कहना चाहती हूँ
पर कोई नहीं सुनता
एक ठण्डा शून्य
विवेक‚ चेतना पर आ ठहरता है
एक लम्बी नि:सीम शांति में
लीन हो रहा है अस्तित्व।
कविताएँ
आत्मघात
आज का विचार
विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
आज का शब्द
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।