देकर दुहाई नारी मुक्ति की
गहन अपमान से अपने चेहरे पर थूक दिये
जाने के बाद
चाहा बहुत होगा उसने
हो जाना मुक्त
लेकिन फिर भी
क्या सच मुक्त हो पाती वह?
और मुक्त होकर भी
अपने बच्चों को क्या देती?
बिन मां का बचपन?
महज नारी मुक्ति के सिद्धातों की ज़िद में!

कैसे छोड़ देती मोह बेटी का
इस सोच में
‘क्या करेगी
उम्र के नाज़ुक मोड़ पर
खड़ी बच्ची मेरे बिन
अपनी किशोरावस्था में मासिक धर्म की शुरुआत पर
कहाँ लेकर जाएगी अपनी मासूम समस्याएं?’

जब अपनों द्वारा ही जलाई गई स्त्री
बच्चों के भविष्य की चिन्ता
में दे देती है
अपने दहेज लोभी पति के पक्ष में गवाही

जीती रहती है भारतीय स्त्री
अपने कलहप्रिय पति के साथ
सात जन्मों का बन्धन लिये
करवाचौथ पूजती
वर्ष दर वर्ष
बच्चों को पिता का नाम
और बस
घर में एक पुरुष होने की
नाममात्र सुरक्षा देने की चाह में।
तो फिर
उसके साथ ही ऐसी क्या विवशता है?
बस ज़रा सी ज़िद ही तो !
ज़रा सा अपमान ही तो !
नहीं चाहिये
कुछ भी कह देने की स्वतन्त्रता
कुछ भी लिख देने की स्वतन्त्रता
कहीं अकेले आने जाने की स्वतन्त्रता
किसी भी पुरुष को दोस्त बनाने की स्वतन्त्रता
लो हार गई वह
एक दुस्साहसी स्त्री‚ स्वतन्त्र स्त्री
लौट आई
इसी सुन्दर नीड़ से दिखते पिंजरे में।
स्वयं मुक्त हो कर
नहीं देना कुंठित बचपन आने वाली पीढ़ी को।
बस इसी मार्मिक छोर पर आकर
हार गई वह !

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।