1
न जाने क्यों
मेरी नदी ने
चट्टानों–पहाड़ों का रास्ता चुना
यायावरी सी टकराती
मैदानी नदियों को सहमाती रही।
कभी नहीं चाहा
समुद्र के विराट अस्तित्व में खो जाना
अपनी राह साधे
विद्रोहिणी तन्वंगी–सी
बाल छितराऐ उफनती रही
बदलते मौसमों में
पर्वतों के वक्ष में जा छुपी
कभी फूलों की घाटियों को सींचा
जंगलो को प्यार किया
पर्वतों को चाहा
वही पर्वत जो
कभी प्रताड़ना
कभी संरक्षण देते रहे
यही नदी जो मेरी थी
मेरे नियंत्रण में
कभी नहीं रही।

2
जाने कितनी रातें जागी है
ये नदी
शायद तबसे
छोड़ आई है जबसे
उस पर्वत की चौड़ी हथेलियाँ
सो चुकता है पाश्र्व में
लेटा थका आकाश तक
अपनी तरल आंखों में
रात लिये जागती रही है
युगों से यह नदी
किनारों तक से छुपाये छुपाये
अपनी हलचल
शान्त मीलों बहती रही है
यह नदी
कोई नहीं पूछता
कोई नहीं जानता
कौनसी व्याकुलता जगाती है इसे?
सबकी तृप्ति बन
कौनसी अतृप्ति किये है तृषित इसे?
बादलों के सांवले प्रतिबिम्ब
पारदर्शी आंचल में समेटे
क्यों जागे जा रही है ये नदी!

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आज का विचार

“जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।