बहुत उर्वर है स्त्री
अनेक कलाओं‚ कल्पनाओं को
जन्म देती‚
हर पल सपनों को मूर्त करती है।
अपने अथक प्रयत्नों से‚
सहेज लेती है
पुरुष का प्रत्येक स्पर्श
और साकार करती है
जीवन की निर्दोष प्रतिकृति
कोमलतम संरचना
चाहे स्पर्श ग्राह्य हों या बलात्
बहुत उर्वर है स्त्री
कि ये अति ही अभिशाप हो जाती है
क्योंकि जन्म देने में अथाह पीड़ा है
तो‚
उससे अधिक पीड़ित करती है‚
अधूरी कृति को नष्ट करने की बाध्यता
स्त्री तो प्रकृति का दूसरा रूप है
सहेज ही लेगी अपने
ये निर्दोष अंकुर
किन्तु कब सीमित होंगे
ये ग्राह्य्र बलात् स्पर्श??

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आज का विचार

विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

आज का शब्द

समानता Women’s Day advocates gender parity. महिला दिवस लैंगिक समानता की वकालत करता है।