मैं?
उसका कमरा हूं
उसके छोटे–छोटे सुखों का
जमावड़ा
कुछ पौधे
कुछ अनर्गल रूमानी बातों से भरी
डायरियां‚ पक्षियों के चित्र
और यहां–वहां फैला पागलपन
पगले गीत‚ दीवानी गज़लें
बेतरतीब ख़तों का पुलिंदा
टेबल पर बिखरी किताबें
कॉफी का खाली प्याला
एक कुतरा हुआ सेब
धूल खाती कपों–ट्राफियों का
छोटा सा ढेर
हैगंर्स में लटके लापरवाह कपड़े
रंग उड़ी जींस
ढीले–ढाले शर्ट।
बिस्तर पर बिखरा अलसाया पन
वहीं टूटे–टपके कुछ सपने
कहकहों से खीजते
दिन उसके
तो
खिड़की
चांद की बेधार हंसिया से
कटती है शाम
क्या कहूं उसे?
यायावार नदी?
स्थायित्व की प्रतीक्षा में
शान्त झील?
मैं भी कहां समझ सका था तब उसे
अब थोड़ा जानता हूं
मेरी दीवारों पर पोस्टर्स चिपका
उसने मुझे भी कितना युवा
कितना रंगीन बना दिया है
इस वर्ष वह चली जाऐगी
वह खुद नहीं जानती कहां
न जाने उसकी दीवानगी
उसे कहां ले जाऐगी
मगर‚
” खुदा करे कि ये दीवानगी रहे बाकि”
कविताएँ
मैं उसका कमरा
आज का विचार
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
आज का शब्द
मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।