आत्महीनता
भविष्यहीनता
अस्तित्वहीनता का
अजब सा दौर है यह
उस पार से लौटे सन्नाटे
आकर सुगबुगाते हैं इस पार

एक गंतव्य को लेकर चले पैर
खो गये हैं जाकर सूखी घास में कहीं
अब वे चलते नहीं रेंगते हैं
और रेंग रेंग कर कहीं नहीं पहुंचते

सूखी अधजली घास में
कैमोफ्लाज हो पड़े हैं पैर
सबसे छुपकर
जैसे हायबरनेशन में पड़ा हो
कोई घायल सरीसृप
कहीं गुम सुरंग में
खुलती हुई एक छोटी झिरी भी
आज अचानक बन्द हो गयी है शायद
कोई सम्प्रेषण नहीं होता हवा का
अभिव्यक्तियां गुमसुम लेटी हैं
वक्त का लहज़ा सख्त है
ठीक ही तो कहता है वक्त
एक पल बहकने का है तो
जीवन के
शेष पल संभलने के हैं
फिर भी
अल्पजीवी कहां होती हैं कामनाएं
लम्बी उम्र जीते सरीसृपों की तरह
पलती रहती हैं समय के साथ
भर जाते हैं ढीठ घाव भी समय के साथ

पैर घायल हैं‚
खो गये हैं सूखी अधजली घास में
तो क्या!
गंतव्य तो वहीं है जहां था
समय के साथ हरियाएगी घास
जमा हुआ खून फिर बहेगा
रैंग कर घास से बाहर आयेंगे पैर
फिर उठ खडे. होंगे लड़खड़ा कर
नापेंगे दिशा अपने गंतव्य की
फिर समय के साथ..

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आज का विचार

किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।