एक बार ईश्वर ने यह तय किया कि यह जाना जाए कि उनके बनाए हुए इतने सारे तरह तरह के जीव जन्तुओं में सबसे तेज कौन दौडता है। बहुत सारी रेस हुई और सेमीफाईनल्स, से फाईनल में पहुंचते पहुंचते बस दो जानवर बचे एक तो चीता और दूसरा बारहसिंघा जो कि सारी हिरणों और एन्टेलोप्स की प्रजातियों में तेज गति वाला था।

चीता को अहसास हुआ कि उसके पंजे तो मुलायम और गद्देदार हैं, जो कि उबड ख़ाबड मैदान की दौड क़े लिये उपयुक्त नहीं थे। उसने अपने एक मित्र जंगली कुत्ते से कडे पंजों का जोडा उधार ले लिया।

रेस शुरु हुई एक ऊंचे ताड क़े पेड क़े पास से। ईश्वर स्वयं रेस के जज बने और उन दोनों प्रतियोगियों को मैदान से होकर पहाडी क़े दूसरे छोर तक एक खास जगह तक दौडने के लिये कहा गया। सारे जानवर इकट्ठे हुए। दौड क़े अन्त वाले स्थान पर शेर और उसके साथियों को जज करने के लिये खडा किया गया। और फिर दोनों को खडा कर के आदेश दिया गया _ रेस शुरु दौडो..

सारे जानवर उत्साह में चिल्लाने लगे, कोई चीते के साथ था तो कोई बारहसिंघा के। बारहसिंघा कुछ दूर दौड क़र आगे हो गयालग रहा था कि बस वही जीतेगा। तभी बारहसिंघा के रास्ते में एक बडा पत्थर आ गया और वह उससे टकरा गया और अपना पैर तुडा बैठा। अब क्या!

किन्तु अच्छे स्वभाव वाले चीता ने रेस बीच में ही छोड दी और बारहसिंघा की सहायता को चला आया। उसे उठाया, लेकर पीछे लौटा जहां, ईश्वर और बाकि जानवर थे।

ईश्वर यह सब देखा और वह चीता के इस नि:स्वार्थ सेवा से बहुत प्रसन्न हुए। और उन्होंने ऐलान किया कि चीता न जीत कर भी जीता है अत: उसे पृथ्वी का सबसे तेज धावक होने का वरदान दिया जाता है और उसे जंगली कुत्ते के कडे पंजे रख लेने की भी इजाजत दी जाती है।

बस तभी से चीता सबसे तेज दौडने वाला जीव है पृथ्वी पर।

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द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।