वसुंधरा को
पलाश के फूलों के जेवर पहनाती
उतर आई है बौराई‚ फगुनाई ऋतु
ओढ़ा कर सरसों की पीली–धानी चुनर
ले चली है चंचला बासंती सखि
भोली वसुन्धरा को‚
क्षितिज पार
जहाँ खेलने को प्रिया से होली
आतुर है सँवराया गगन
भरे हैं धरा के हाथ रंग भरी फूलों की पांखुरियों से
रंग ही देगी गगन के नील–कपोल इन मद भरे रंगो से
थाम लेगा आतुर प्रिय
चारों दिशाओं की बाँहे फैला
धर देगा सूर्य की सिन्दूरी बिन्दी धरा के भाल पर
बिना रंगे ही आरक्त हो जाएंगे धरा के कपोल
बिखर जाएंगी पांखुरियाँ चारों ओर
खनकती हवाओं में हँसती बासन्ती सखि
गगन के पाश में वसुन्धरा को ठिठका सा छोड़
लौट जाएगी ।
अलौकिक खेल रंगों का
फाल्गुनी मिलन ये धरा–गगन का !!
कविताएँ
अलौकिक खेल रंगों का
आज का विचार
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
आज का शब्द
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।