पीड़ा के घनीभूत पलों में
होकर बेहद उदास
एक बार कहा था तुमने
‘ इसी जमीन का मौसम हूँ‚
कभी तो लौट आऊंगा’
तुम्हारा ही संशय
छल रहा था
विश्वास तुम्हारा
अन्तत: लौटे हो तुम
किन्तु
इतने बरसों में
ज़मीन चटख गई है
इसकी जीवंत उर्वरता में
तीखे लवण घुल चुके हैं
उमड़–उमड़कर बरसे हो तुम
बरस– बरस कर थक गए हो
एक अंकुर तक नहीं फूटा
तुमने हताश हो
थाम लिया है सर
अपने हाथों
और ज़मीन चटखते जाने की
अपनी ही पीड़ा से
बोझल है।
किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।