प्रत्येक आदि का अन्त
प्रारम्भ का समापन
किन्तु कविता
तुम्हारा अन्त कहाँ
अन्त में भी आरम्भ
एक अन्तहीन सिलसिला
क्षितिज की तरह
दूर‚ बहुत दूर तक
नभ को छूता
उस पार – इस पार
वृहद‚ विस्तृत‚ भव्याकार
मन करता है उड़ चलें
चल कर छू लें
क्षितिज के उस पार
कोई मनमीत प्रतीक्षारत
कोई नवगीत साधनारत
संभवत: मिले
किंचित दिखे
क्षितिज के उस पार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

आज का शब्द

समानता Women’s Day advocates gender parity. महिला दिवस लैंगिक समानता की वकालत करता है।