शीर्षक आपको निश्चित ही चौंका सकता है, किंतु यह आज के बदलते समाज की एक कड़वी सच्चाई है। इस सच्चाई से कोई मुकर नहीं सकता। आज जिन हाथों को थामकर मासूम झूलाघर में पहुँचाए जा रहे हैं, वही मासूम हाथ युवावस्था की देहरी पार करते ही उन काँपते हाथों को वृद्धाश्रम पहुँचाएँगे, इसमें कोई दो मत नहीं। यह खयाल तब आया, जब एक अखबार में पढ़ा कि शहर के एक वृध्दाश्रम में अगले दस वर्षों तक किसी भी बुजुर्ग को नहीं लिया जाएगा। वहाँ की सारी सीटें बुक हो चुकी हैं। यह एक दहला देने वाली खबर है, जो आज के बदलते समाज को एक करारा चाँटा है, पर इसकी भयावहता को आखिर कौन समझेगा?

एक पिता की ऑंखों में अपने बढ़ते बच्चे को देखकर कौन-सा सपना पलता है, कभी इसे उसके चेहरे पर देखने की कोशिश की है आपने? जब एक पिता अपने मासूम और लाडले को ऊँगली थामकर चलना सिखाता है, तो दिल की गहराइयों में कहीं एक आवाज उठती है, एक सपना पलता है कि आज तेरी ऊँगली पकड़कर मैं तुझे चलना सीखा रहा हूँ, और कल जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ, तो ऐ मेरे लाडले तू भी इसी तरह मेरा हाथ थामे मुझे सहारा देना। लेकिन बहुत ही कम ऐसे भाग्यशाली होते होंगे, जिनका ये सपना सच होता होगा।

यह समाज की सच्चाई है कि झुर्रीदार चेहरा हमेशा हाशिए पर होता है। तट का पानी हमेशा बेकार होता है और जीवन की साँझ का मुसाफिर हमेशा भुला दिया जाता है। जिस तरह डूबते सूरज को कोई नमन नहीं करता, उसी तरह अनुभव की गठरी बने बुजुर्ग को भी कोई महत्व नहीं देता। वह केवल घर के एक कोने पर रखी हुई जर्जर मेज की तरह उपेक्षित ही रहता है, जिस पर कभी कबाड़ी की नजर भी जाती है, तो तिरस्कार के भाव से, इसके साथ ही उसे कम से कम पैसे में खरीद लेने की चाहत होती है।

बुजुर्गों पर हमेशा यह आरोप लगाया जाता है कि वे समय के साथ नहीं चलते, सदैव अपने मन की करना और कराना चाहते हैं। उन्होंने जो कुछ भी सीखा, उसे अपने बच्चों पर लादना चाहते हैं। उनके मन का कुछ न होने पर वे बड़बड़ाते रहते हैं। उनका यह स्वभाव आज के युवाओं को बिलकुल नहीं भाता। कहते हैं कि बुढ़ापे के साथ बचपन भी आ जाता है। बच्चों को एक बार सँभाला भी जा सकता है, पर बुजुर्गों को सँभालना बहुत मुश्किल होता है। ये सारे आरोप अपनी जगह पर सही हो सकते हैं। पर इसे ही यदि स्वयं को उनके स्थान पर रखकर सोचा जाए, तो कई आरोप अपने आप ही धराशायी हो जाते हैं। रही बात नई पीढ़ी के साथ कदमताल करने की, तो कौन कहता है कि ये नई पीढ़ी के साथ कदमताल नहीं करना चाहते। क्या कभी किसी सास या बुजुर्ग महिला को अपनी बेटी या बहू के साथ स्कूटी पर पीछे बैठकर मंदिर जाते या शापिंग करने जाते नहीं देखा गया है? यही नजारा सुबह किसी पार्क में भी देखा जा सकता है, जहाँ बुजुर्ग दौड़ लगाते हुए देखे जा सकते हैं, या फिर किसी नवजवान को कसरत के सही तरीके बताते हुए देखे जा सकते हैं। अरे भाई अधिक दूर जाने की आवश्यकता ही नहीं है, शादी-समारोह में किसी बुजुर्ग को रीति-रिवाजोें के बारे में विस्तार से बताते हुए भी तो अक्सर देखा गया है।

बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं, यदि समाज या घर में आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में कुछ गलत हो रहा है, तो इसे बताने के लिए इन बुजुर्गों के अलावा कोन है, जो हमें सही बताएगा? शादी के ऐन मौके पर जब वर या वधू पक्ष के गोत्र बताने की बात आती है, तो घर के सबसे बुजुर्ग की ही खोज होती है। आज की युवा पीढ़ी भले ही इसे अनदेखा करती हो, पर यह भी एक सच है, जो बुजुर्गों के माध्यम से सही साबित होता है। घर में यदि कंप्यूटर है, तो अपने पोते के साथ गेम खेलते हुए कई बुजुर्ग भी मिल जाएँगे, या फिर आज के फैशन पर युवा बेटी से बात करती हुई कई बुजुर्ग महिलाएँ भी मिल जाएँगी। यदि आज के बुजुर्ग यह सब कर रहे हैं, तो फिर उन पर यह आरोप तो बिलकुल ही बेबुनियाद है कि वे आज की पीढ़ी के साथ कदमताल नहीं करते।

बुजुर्ग हमारे साथ बोलना, बतियाना चाहते हैं, वे अपनी कहना चाहते हैं और दूसरों की सुनना भी चाहते हैं। पर हमारे पास उनकी सुनने का समय नहीं है, इसीलिए हम उनकी सुनने के बजाए अपनी सुनाना चाहते हैं। याद करो, अपनेपन से भरा कोई पल आपने अपने घर के बुजुर्ग को कब दिया है? शायद आपको याद ही नहीं होगा। क्योंकि अरसा बीत गया, इस बात को। इसे ही दूसरी दृष्टि से देखा जाए कि ऐसा कौन-सा पल है, जिसे घर के बुजुर्ग ने आपसे बाँटना नहीं चाहा? बुजुर्ग तो हमें देना चाहते हैं, पर हम ही हैं कि उनसे कुछ भी लेना नहीं चाहते। हमारा तो एक ही सिध्दांत हैं कि बुजुर्ग यदि घर पर हैं, तो शांत रहें, या फिर बच्चों और घर की सही देखभाल करें। इससे अधिक हमें कुछ भी नहीं चाहिए।

आज के बुजुर्ग केवल स?जी लाने, बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने, गेहूँ पिसवाने, बिजली या टेलीफोन का बिल जमा करवाने के लिए नहीं हैं, उनसे कभी कहानियों का पिटारा खोलने को कहकर तो देखें, फिर देखो, किस तरह से निकलती हैं, उनके पिटारे से शिक्षाप्रद और रहस्यमयी कहानियाँ। कभी सुनी हैं उनके पोपले मुँह से मीठी लोरियाँ? हाथ चाट जाए, ऐसे अचार की रेसीपी आखिर किसके पास मिलेगी? और तो और घर में कभी किसी को कोई छोटी-सी बीमारी हुई, और उसका घरेलू उपचार बताने के लिए किसे ढूँढ़ा जाएगा भला? घर में अचानक फोन आता है कि गाँव में रहने वाले ताऊ या फिर कोई सगे-संबंधी की मौत हो गई हे, तो ऐसे में घर में क्या-क्या करना चाहिए, यह कौन बताएगा? अपने घर की परंपरा किसी पड़ोसी से तो नहीं पूछी जा सकती। उसे तो हमारे घर के बुजुर्ग ही बता पाएँगे।

आज यह धरोहर हमसे दूर होती जा रही है। सरकार तो किसी भी पुरानी इमारत को हेरीटेज बनाकर उसे नवजीवन दे देती है। लोग आते हैं और बुजुर्गों के उस पराक्रम की महिमा गाते हैं। पर घर के ऑंगन में ठकठक की गूँजती आवाज जो हमारे कानों को बेधती है, आज वह आवाज वृध्दाश्रमों में कैद होने लगी है। झुर्रियों के बीच अटकी हुई उनके ऑंसुओं की गर्म बूँदें हमारी भावनाओं को जगाने में विफल साबित हो रही हैं, हमारी उपेक्षित दृष्टि में उनके लिए कोई दयाभाव नहीं है । यह शुरुआत है एक अंधकार की, जहाँ खो जाएँगे हम भी एक दिन ……

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आज का विचार

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।